तीन हिन्दी मुक्तक

तीन हिन्दी मुक्तक

गैरौँ से भि प्यार कर के डुबे हम।
लोगोँ पर उधार कर के डुबे हम।

तब से हम परेसान घुमते रहे है,
सिर्फ इनतजार कर के डुबे हम।
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इस्क और प्यारका मजा कुछ और था।
बेवफा इन्तजारका मजा कुछ और था।

जब तक जीनेकि इजाजत मिलेगी हमे
मुफ्तके दिलदारका मजा कुछ और था।
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कौन कहता है कि हम आते नहि।
सच तो ए है कि आप बुलाते नहि।

जरुरत है तुम्हे तो पुछकर देखो ना
हम अब गैरौँ से काम करवाते नहि।
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